अल्ट्रासेंसिटिव रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट (यूआरडीटी) टेस्ट से मलेरिया की जांच तेजी से होने के साथ सटीक नतीजे देगी। खून की बूंद से मरीज को चंद मिनटों में मलेरिया होने या नहीं होने की जानकारी मिल सकेगी। कुमाऊं विश्वविद्यालय के शोधार्थी डॉ. पारस महाले ने प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम के निदान के लिए नई तकनीक का आविष्कार किया है। इसके पेटेंट के लिए आवेदन भी किया है।आईसीएमआर और राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान के प्राध्यापक डॉ. अनूप अनविकर और जैव प्रौद्योगिकी विभाग कुमाऊं विश्वविद्यालय की प्राध्यापक डॉ. वीना पांडे ने निर्देशन में शोधार्थी डॉ. पारस महाले ने यह शोध किया है। महाले के अनुसार सामान्य रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट कभी-कभी कम परजीवी संख्या पर मलेरिया को पकड़ नहीं पाते हैं। अल्ट्रासेंसिटिव रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट इससे दस गुना तेज और ज्यादा सटीक परिणाम देता है। उन्होंने कहा कि मलेरिया के अधिकतर मामले सीमित संसाधनों वाले देशों में होते हैं। बीमारी की मुख्य समस्या कम निदान हैं क्योंकि ग्रामीण आदि क्षेत्रों में हाई-थ्रूपुट प्रक्रियाओं को लागू करना मुश्किल है।
ये है विधि
डिटेक्टर मॉलिक्यूल्स यानी क्वांटम डॉट, फ्लोरोसेंट और जीएनपी मॉलिक्यूल्स और प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम हिस्टिडीन-रिच प्रोटीन 2 (पीएफएचआरपी 2) के खिलाफ डिटेक्टिंग एंटीबॉडी के बीच कंजुगेशन प्रोसेस किया गया। क्वांटम डॉट और जीएनीपी के आकार और एंटीबॉडी कंजुगेशन की पुष्टि ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी और स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री का उपयोग करके की गई। फ्लोरोसेंट एलएफआईए को जेल डॉक्यूमेंटेशन सिस्टम या यूवी टॉर्च का उपयोग करके विकसित और विज़ुअलाइज़ किया गया जो फ्लोरोफोर मॉलिक्यूल्स को विशिष्ट एक्साइटेशन प्रदान करता है।
यह निकला परिणाम
शोधार्थी डॉ. पारस महाले ने अनुसार क्वांटम डॉट-एलएफआईए को सामान्य शब्दावली में अल्ट्रासेंसिटिव आरडीटी कहा जा सकता है और जीएनपी-एलएफआईए को पारंपरिक आरडीटी कहा जाता है। प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम दुनिया में गंभीर मलेरिया रोग पैदा करने वाले पांच प्रोटोजोआ में से एक है। उन्होंने कहा कि भविष्य में मल्टीप्लेक्स अल्ट्रासेंसिटिव-आरडीटी हेल्थकेयर सेक्टर में विभिन्न बीमारियों का निदान होगा।







