Tuesday, October 28, 2025
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समय की बचत और मुनाफा ज्यादा डीएसआर पद्धति मेहनत कम

काशीपुर। ऊधमसिंह नगर में किसान धान की फसल की बुआई के लिए डीएसआर पद्धति को अपना रहे हैं। इससे मेहनत, समय और रुपये की बचत हो रही है। साथ ही पानी की लागत और मीथेन उत्सर्जन कम कर पर्यावरण में सुधार भी हो रहा है।जिले में करीब छह हजार एकड़ में इस बार डीएसआर (डायरेक्ट सीडेड राइस) पद्धति से धान की बुआई की गई थी। इस पद्धति को किसानों ने कारगर बताया है। कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यान वैज्ञानिक डॉ. अनिल चंद्रा ने बताया कि डीएसआर पद्धति से 35 से 40 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। ट्रांसप्लांट पद्धति में एक किलो चावल निकालने के लिए चार हजार से पांच हजार लीटर पानी लग जाता है। इस पद्धति से मीथेन उत्सर्जन में भी 30 प्रतिशत तक कमी आएगी और लागत पर भी असर पड़ेगा। बता दें कि काशीपुर, बाजपुर और जसपुर क्षेत्र पानी का स्तर 60 से 70 फीट नीचे गिरने के कारण रेडजोन में गिने जा रहे हैं। इसमें भी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे।

डीएसआर पद्धति का तरीका
खेत की जुताई करने के बाद उसे समतल करना होता है। इसके बाद डीएसआर सीड ड्रिल मशीन में सात किलो प्रति एकड़ के हिसाब से धान के बीज और 30 से 35 किलो डीएपी खाद के साथ मशीन से डेढ़ से दो इंच गहराई में बुआई करनी होती है। बुआई के 24 घंटे बाद सिंचाई की जाती है। करीब 12 से 15 दिन बाद खरपतवारनाशक का छिड़काव करना होता है। इसके बाद 30 से 35 दिन बाद दोबारा खरपतवारनाशक का छिड़काव किया जाता है। इसके बाद इसमें 90 से 100 किलो यूरिया और 25 किलो पोटाश प्रति एकड़ डालनी होती है। इस प्रकार डीएसआर पद्धति से खेती कर सकते हैं।

डीएसआर के फायदे
डीएसआर पद्धति से प्रति एकड़ सात किलो जबकि ट्रांसप्लांट पद्धति में 12 किलो बीज की लागत आती है। एक ओर धान की ट्रांसप्लांट पद्धति पर 20,000 रुपये प्रति एकड़ खर्च हो रहे हैं। वहीं डीएसआर पद्धति से 3000 रुपये प्रति एकड़ लागत आती है। इसमें ट्रांसप्लांट खेती के मुकाबले सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं रहती। कीटनाशक का ज्यादा छिड़काव भी नहीं करना पड़ता है। ट्रांसप्लांट के मुकाबले फसल सात से 15 दिन पहले कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फसल की बुआई के लिए श्रमिकों को जरूरत नहीं पड़ेगी जिससे चार से पांच हजार रुपये प्रति एकड़ लगने वाला लेबर खर्च भी बचेगा।

किसानों के अनुभव
दस एकड़ जमीन पर डीएसआर पद्धति से धान की फसल लगाई है। पैदावार अच्छी हुई है। ट्रांसप्लांटिंग के मुकाबले डीएसआर पद्धति ज्यादा कारगर साबित हुई है। – नवनीत चौहान, किसान, अंगदपुर
डीएसआर तरीके से आठ एकड़ भूमि पर धान की फसल लगाई थी। आर्थिक बचत के साथ सिंचाई के लिए ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ी। मेहनत और समय दोनों बचता है। फसल भी अच्छी हुई है। – जगतार सिंह, किसान, महुआखेड़ा गंज

डीएसआर परंपरागत तरीके से काफी लाभदायक और आसान है। इस बार 11 एकड़ में धान लगाया था। इससे बचत हुई और मिट्टी की गुणवत्ता भी बरकरार है। अगली बार इस पद्धति से ज्यादा क्षेत्र में धान की बुआई करूंगा। – सनी चौधरी, वीरपुर

धान की डीएसआर पद्धति किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है। इस पद्धति के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा। पानी की बचत के साथ मिट्टी की उर्वरक क्षमता में भी सुधार होगा। – कल्याण सिंह रावत, कृषि एवं भू संरक्षण अधिकारी, काशीपुर

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