उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में नरकोटा में निर्माणाधीन पुल भ्रष्टाचार का जीवंत उदाहरण है। पुल निर्माण में विभिन्न स्तर पर भ्रष्टाचार की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। यह बात मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अशोक कुमार ने नरकोटा पुल शटरिंग से गिरकर दो मजदूरों की मौत मामले में फैसला सुनाते हुए कही। कोर्ट ने मामले की विवेचना में पुलिस की भूमिका को भी लापरवाही पूर्ण व गैर जिम्मेदार बताते हुए कहा कि तत्कालीन सीओ तथा विवेचक पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई अमल में लाई जानी चाहिए।अदालत ने कहा कि समस्त साक्ष्यों के आधार पर पाया गया है कि निर्माणदायी संस्था के वरिष्ठ अधिकारियों ने पुल निर्माण कार्य में लापरवाही बरती। जिससे जन-धन की हानि हुई। मृतक मजदूर के परिजनों ने केस दर्ज कराया जबकि यह जिम्मेदारी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों की बनती थी। सरकार को इस तथ्य का संज्ञान लेकर कंपनी के अधिकारियों, इंजीनियरों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए दुर्घटनाग्रस्त पुल से हुई जनधन हानि की वसूली करनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि कोई भी सरकारी परियोजना का निर्माण जनता के टैक्स के पैसों से होता है यदि इसकी बर्बादी कुछ अधिकारियों की लापरवाही से होती है तो इसका संज्ञान सरकार को अवश्य लेना होगा। कोर्ट ने कहा कि जानकारी मिली है कि निर्माणाधीन पुल दूसरी बार टूट कर गिरा है, परंतु शायद इस संदर्भ में शासन-प्रशासन के स्तर से कोई विधिक या अनुशासनात्मक कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई। यह परियोजना भ्रष्टाचार का एक जीवंत उदाहरण है। कोर्ट ने मामले की विवेचना में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाए। कहा कि विवेचक ने इस मामले में बेहद लापरवाही पूर्वक तथा गैर जिम्मेदार तरीके से विवेचना की है। जिससे विवेचक प्रदीप सिंह चौहान व तत्कालीन सीओ के खिलाफ भी कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई अमल में लाई जानी चाहिए।







