किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) ने नई पहल की है। केंद्र ने रोजमेरी और ओरगेनो की दो खास प्रजातियां सिम सुदीक्षा और सिम हरियाली विकसित किए हैं। इनके पत्तियों की बनी चाय न सिर्फ सेहत के लिए गुणकारी है बल्कि किसानों की आय बढ़ाने में मददगार भी साबित हो रही है। हर्बल चाय के शौकीन इन पौधों को अपने गमलों में भी उगा सकते हैं। इन प्रजातियों के पौधों की सूखी पत्तियों की कीमत बाजार में 250 से 300 रुपये प्रति किलोग्राम है। विशेषज्ञों के अनुसार एक नाली जमीन से किसान सालाना सात से आठ हजार रुपये की कमाई कर सकते हैं। इसकी खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली है। सीमैप की ओर से किसानों को रोजमेरी और ओरगेनो प्रजाति के इन पौधे उपलब्ध कराने के साथ-साथ खेती का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। पत्तियों से हर्बल चाय बनाने की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग भी सिखाई जाती है। प्रशिक्षण के साथ-साथ किसानों के लिए समय-समय पर कार्यशाला भी कराई जाती हैं।
तनाव कम करने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में है सहायक
सिम सुदीक्षा और सिम हरियाली से बनी हर्बल चाय स्वादिष्ट और शरीर के लिए लाभकारी है। यह पाचन क्रिया को सुधारने, तनाव कम करने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और हृदय को बेहतर करने में मददगार है। इनमें एंटी ऑक्सीडेंट्स गुण होने ये यह शरीर को डिटॉक्स करती है। एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होने के कारण सर्दी-खांसी में राहत देती है। रोजाना एक से दो कप चाय पीना सेहत के लिए लाभकारी होता है।
उत्पादकों को हो रहा लाभ
चौरसों के प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर पांडेय और सिरकोट की दर्शना पाठक सीमैप के सहयोग से सिम सुदीक्षा और सिम हरियाली का उत्पादन कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि केंद्र से उन्हें प्रशिक्षण और मदद मिल रही है। इनसे बनी हर्बल चाय काफी लाभकारी है। लोग भी इसे पसंद कर रहे हैं। इसकी बिक्री से अच्छी आमदनी हो रही है। सीमैप से प्रशिक्षित किसान अपने उत्पाद को घर पर तैयार कर सीधे बाजार में उपलब्ध करा सकते हैं। इन औषधीय पौधों को अपने किचन गार्डन या गमलों में आसानी से उगाया जा सकता है। इनकी देखभाल बेहद आसान है। रोजमर्रा के उपयोग में इनकी पत्तियों को सुखाकर या ताजी चाय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। आय अर्जित करने के उद्देश्य से इन पौधों की खेती करना काफी लाभदायक है। – प्रवल प्रताप सिंह वर्मा, तकनीकी अधिकारी, सीमैप शोध केंद्र पुरड़ा