श्रीनगर। पौड़ी जिले में सर्द मौसम के बावजूद बर्फबारी और बारिश न होने के कारण वन विभाग और पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ गई है। यदि यही स्थिति रही, तो फायर सीजन में पौड़ी के जंगल एक बार फिर भीषण आग की चपेट में आ सकते हैं। उत्तराखंड के ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में कुछ दिन पहले बारिश और बर्फबारी हुई थी। लेकिन पौड़ी में पिछले चार महीनों से बारिश न होने के कारण जमीन की नमी पूरी तरह से उड़ चुकी है। सर्द मौसम में भी बर्फबारी की कमी का असर जमीन की नमी पर पड़ा है, जो आगामी फायर सीजन में वनाग्नि की घटनाओं को और बढ़ा सकता है।
बारिश-बर्फबारी की कमी से वनाग्रि का खतरा। इस साल पौड़ी जिले में अन्य जिलों के मुकाबले सबसे अधिक वनाग्नि की घटनाएं देखने को मिलीं. लगभग 373 हेक्टेयर जंगल में आग लगने से वन संपदा जलकर राख हो गई। कई पेड़ वर्षा के बाद भी फिर से नहीं उगे। इस स्थिति में अगर सर्द मौसम में बारिश और बर्फबारी होती तो भूमि के तापमान को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती थी. लेकिन सूखी जमीन के कारण वनाग्नि का खतरा अब और बढ़ गया है। गढ़वाल विवि के वनस्पति शास्त्र के वैज्ञानिक डॉक्टर विक्रम सिंह ने बताया कि अगर बर्फबारी होती है, तो लंबे समय तक नमी बनी रहती है। इससे वन विभाग अब फायर सीजन से पहले ही जलन नियंत्रण (कंट्रोल बर्निंग) शुरू करने जा रहा है, जो जनवरी के बजाय दिसंबर से प्रारंभ होगी. इससे वनाग्नि की घटनाओं को कम करने की कोशिश की जाएगी।
ग्रामीणों से समन्वय बनाने का सुझाव। इसके अलावा, डीएम पौड़ी आशीष चौहान ने भी वन विभाग को सुरक्षात्मक उपायों को तेजी से लागू करने के निर्देश दिए हैं। ताकि फायर सीजन से पहले स्थिति को नियंत्रण में लाया जा सके। इसके लिए ग्रामीणों के साथ समन्वय बनाए रखने का भी सुझाव दिया गया है। इस समय पौड़ी के जंगलों पर बारिश और बर्फबारी के लिए निगाहें टिकी हैं। इन्हीं प्राकृतिक घटनाओं से आग की संभावना को कम किया जा सकता है। अगर स्थिति ऐसी ही रही तो अगले फायर सीजन में जंगलों में भीषण आग लगने का खतरा बहुत अधिक हो सकता है।