उत्तराखंड के जनजाति इलाकों में विकास किस गति से दौड़ रहा है, यह जानने के लिए पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से 61 किलोमीटर दूर कुलेख गांव पहुंच गया। वहां की जिंदगी पहाड़ियों पर बिखरी नजर आई। शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं के लिए आज भी सूरज निकलने का इंतजार है। जंगल में बहते गधेरे के पानी से प्यास बुझती है और केंद्र सरकार की राशन योजना से भूख। बात दो दशक पुरानी है। वनराजी गांव औलतड़ी में बीमारी फैली थी। एक के बाद एक ग्रामीणों की असमय मौत होने लगी। इससे बचने के लिए चार परिवारों के लोग 2001 में औलतड़ी से पलायन करके कुलेख में आकर बस गए जिनकी आबादी अब 45 से 50 के बीच है। कुलेख गांव सड़क मार्ग से महज 500 मीटर की पैदल दूरी पर है। अभी गांव तक पक्की सड़क नहीं बनी है।इस गांव का एक भी युवक 12वीं पास नहीं कर पाया है। हाल ही में केवल दो लड़कियों ने स्नातक किया है। रोजगार की स्थिति शून्य है। स्वास्थ्य के लिए बगल के गांव के उप प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर रहना पड़ता है। यह केंद्र केवल वार्ड बॉय के सहारे चलता है। न डॉक्टर और न ही अन्य सुविधाएं हैं।केंद्र की मोदी सरकार से यदि खाने के लिए राशन न मिले तो पेट की आग को शांत करना भी मुश्किल हो जाए। यह राशन भी उनके लिए नाकाफी है जिसके चलते आज भी वनराजी परिवार यदा-कदा जंगल में जाकर कंदमूल फल से पेट भरने के लिए विवश हैं।
पेट पर पड़ रही पलायन की मार
वनराजी समुदाय के लोग आसपास के गांवों में खेतीबाड़ी या मकान आदि का काम कर अपने परिवार की गुजर-बसर करते थे। अब गांवों से पलायन और खेतीबाड़ी चौपट हो जाने से उन्हें काम नहीं मिल रहा है। इससे वनराजी समाज के सामने पेट पालने का संकट खड़ा हो गया है। कलावती देवी, धौली देवी, दीपा, संजना, सोबन सिंह रजवार, खगेंद्र सिंह, बहादुर सिंह आदि ग्रामीण कहते हैं कि उनके पास कोई काम नहीं है। यदि सरकार रोजगार मुहैया कराए तो उन्हें रोजी-रोटी मिल सकती है। इससे उन्हें अपने परिवार को शिक्षित कर आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।पीएम मोदी यदि राशन बंद कर दें तो हर घर के सामने खाने का संकट खड़ा हो जाएगा। गांव में ऐसा कोई संसाधन नहीं है जिसकी मदद से हमारे श्रम के बदले रकम मिल सके और हम अपना परिवार चला सकें। सिंचाई की सुविधा नहीं है। बारिश पर खेती निर्भर है जिससे दो महीने का भी अनाज नहीं मिल पाता। पूरे गांव में मेरी बेटी हिमानी और विजय सिंह रजवार की बेटी जानकी ने ही बीए पास किया है।इनके अलावा, दूसरे बच्चे पढ़ने में रुचि ही नहीं लेते। गांव के लड़के कम उम्र में ही नशे की चपेट में आ रहे हैं। इससे उनकी जिंदगी भी जल्द ही बर्बाद हो जा रही है। – जगत सिंह रजवार
गांव के आसपास जलस्रोत नहीं है। हर घर नल और जल योजना आज तक इस गांव में नहीं आई। डेढ़ किलोमीटर दूर जंगल में बहते गधेरे से गांव के हर परिवार को पानी लाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। ऐसा भी होता है कि गांव के कई लोग एक सप्ताह तक नहाते नहीं हैं। स्वास्थ्य का बुरा हाल है। कोई बीमार पड़ जाए तो उसका इलाज नहीं हो पाता। – भावना रजवार
कुलेख बाजार के पास का वनराजी गांव है। यहां बदलाव हुआ है। इसके बाद भी यहां के लोगों के पास आजीविका का साधन नहीं है। पानी और अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए वनराजी जूझ रहे हैं। समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रशासन से लेकर सरकार के स्तर तक संस्था की ओर से पैरवी की जा रही है। – रेनू ठाकुर, अर्पण संस्था







