Sunday, September 21, 2025
Google search engine
Homeदेश/विदेशमिस्र के पिरामिड की मरम्मत का दुनियाभर के आर्कियोलॉजिस्ट क्यों कर रहे...

मिस्र के पिरामिड की मरम्मत का दुनियाभर के आर्कियोलॉजिस्ट क्यों कर रहे हैं विरोध- दुनिया जहान

काहिरा के दक्षिण पश्चिम में फैले रेगिस्तान में यह ग्रेट पिरामिड एक महान सभ्यता की काबीलियत और जीवटता के प्रतीक के रूप में खड़ा है । लेकिन ग्रेट पिरामिड और उसके पास ही बने दो अन्य पिरामिड अब वैसे नहीं रहे जैसे पहले थे ।

पिछली कुछ सदियों के दौरान उन्हें काफ़ी क्षति पहुंची है ।

उनके भीतर रखे ख़ज़ाने लूट लिए गए । ढांचे की बाहरी परत को भी नुक़सान पहुंचाया गया । गीज़ा के मेनकौरे पिरामिड को लेकर अब बड़ा विवाद खड़ा हो गया है क्योंकि मिस्र का एंटीक्वीटीज़ डिपार्टमेंट या पुरातन विभाग इस पिरामिड का जीर्णोद्धार करना चाहता है यानि उसकी मरम्मत और रेनोवेशन करना चाहता है ।

मिस्र के पुरातन विभाग के प्रमुख इस योजना को सदी का एक सबसे बड़ा प्रोजेक्ट बताते हुए कह रहे हैं कि यह मिस्र की ओर से विश्व को दिया जाने वाला तोहफ़ा होगा । लेकिन कई लोग मानते हैं कि जीर्णोद्धार का यह प्रोजेक्ट पुरातत्वीय संरक्षण के नियम और सिद्धांतों के अनुसार नहीं है ।

पिरामिडों का मुद्दा

यूके की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में इजिप्टोलॉजी यानि मिस्र संबंधी विषयों के प्रोफ़ेसर एडेन डॉडसन पिरामिड के बारे में कहते हैं, ”मिस्र के पिरामिड दरअस्ल मक़बरें हैं । और जिन शाही पिरामिडों की हम बात कर रहे हैं वो ख़ास किस्म के मक़बरे हैं । इसके तीन पहलू हैं जिसमें से एक है इसकी नुकीली चोटी ।”

”शाही मक़बरे के भीतर एक कमरा होता है जिसमें क़ब्र होती है । कुछ मान्यताओं के अनुसार यह अंनतकाल का शयनकक्ष भी है । शाही मक़बरे का दूसरा पहलू यह होता है कि इसमें मृतक इस दुनिया और दूसरी दुनिया के बीच संपर्क साधे रह सकता है ।”

”इसलिए वहां एक मंदिर या प्रार्थनास्थल भी होता है, जहां लोग प्रार्थना कर सकते हैं या मृतक को भेंट दे सकते हैं और जहां मृतक की आत्मा इस दुनिया में आ सकती है । पिरामिड के समय यानि ईसा पूर्व 2600 और ईसा पूर्व 1550 के दौरान पिरामिड को इसके दो पहलुओं के माध्यम से देखा गया । यानि वो मक़बरे भी थे और प्रार्थनास्थल भी ।”

शाही मक़बरों के लिए पिरामिड का आकार ही क्यों चुना गया इस बारे में पुख़्ता तौर पर कुछ कहना तो मुश्किल है, मगर एडेन डॉडसन कहते हैं कि इसका संबंध मिस्र के सूर्य देवता ‘रा’ से हो सकता है, जिन्हें मिस्र के मिथकों में सभी देवों का पिता माना जाता था ।

एडेन डॉडसन कहते हैं, एक धारणा यह है कि पिरामिड का आकार आसमान से धरती पर सूर्य की किरणों के फैलने को दर्शाता है । गीज़ा के मैदानी इलाके में जो तीन पिरामिड हैं, उनमें मेनकौरे पिरामिड सबसे छोटा है । उसकी ऊंचाई क़रीब 60 मीटर है और उसका तल सभी दिशाओं में सौ मीटर तक फैला हुआ है ।

एडेन डॉडसन का मानना है कि मेनकौरे का पिरामिड छोटा ज़रूर था, लेकिन अन्य पिरामिड की तुलना में अधिक शानदार था । उसके निचले हिस्से की दीवारों पर ग्रेनिट या ग्रेनाइट की परत थी ।

सभी पिरामिडों की बाहरी दीवारें अब सीढ़ियों के समान हो गई हैं, लेकिन पहले इसकी बाहरी दीवारों पर मुलायम पत्थरों की परत हुआ करती थी ।

इसके लिए पॉलिश किए गए चूना पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता था । मेनकौरे पिरामिड के क़रीब आधे हिस्से पर ग्रेनिट पत्थरों की परत थी ।

इस लाल ग्रेनिट के हर ब्लॉक का वज़न दो टन से ज़्यादा होता था, जिन्हें पांच सौ मील दूर स्थित असवान से नील नदी के ज़रिए बेड़ों पर लाद कर लाया गया था ।

एडेन डॉडसन ने कहा, ”मेनकौरे पिरामिड की बाहरी परत करीब पूरी उखड़ गई है । उसकी एक दीवार में बड़ा छेद भी है । कहा जाता है मिस्र के एक मध्यकालीन राजा ने इसे ढहाने की कोशिश की थी । अब इस पिरामिड के केवल 15-29 प्रतिशत हिस्से पर ही ग्रेनिट की परत बरक़रार है ।”

”पिरामिड के गिर्द रेत पर ग्रेनिट पत्थरों के टूटे हुए ब्लॉक पड़े हैं । इसके ऊपरी हिस्से पर से अच्छी क्वालिटी के पॉलिश्ड चूना पत्थर की परत पहले ही उतारी जा चुकी है । शायद मध्यकालीन काहिरा में उन पत्थरों को उतार कर मस्जिदों में इस्तेमाल कर लिया गया था ।”

अब मेनकौरे पिरामिड के जीर्णोद्धार के लिए जो योजना बनाई जा रही है, उसका नेतृत्व डॉक्टर मुस्तफ़ा वज़ीरी कर रहे हैं जो मिस्र के पुरातन विभाग के प्रमुख हैं । वो ख़ुद एक जाने-माने पुरातत्ववेत्ता हैं । लेकिन उनकी यह योजना विवादों में घिर गई है ।

पिरामिडों के लिए योजना

क़रीब एक महीने पहले मुस्तफ़ा वज़ीरी ने एक वीडियो जारी किया । इसमें वो मेनकौरे पिरामिड के पास एक ग्रेनिट पत्थर की शिला पर खड़े दिख रहे थे । उनके इर्द-गिर्द कई मज़दूर पिरामिड पर काम कर रहे थे । इस वीडियो से यह संकेत दिया जा रहा था कि वहां काम शुरू हो चुका है ।

न्यूज़ीलैंड की ऑकलैंड यूनिवर्सिटी में प्राचीन इतिहास की प्रोफ़ेसर डॉक्टर जेनिफ़र हेलूम का कहना है कि इस वीडियो को देख कर ज़रा भी अंदाज़ा नहीं लगता कि वहां कितने बड़े स्तर पर काम होने वाला है । पहले कभी भी इतने बड़े स्तर पर काम नहीं किया गया है ।

”वो दिखा रहे थे कि वो कैसे इस पिरामिड की मरम्मत का काम करेंगे । वो इस वीडियो में अरबी भाषा में मज़दूरों से बात कर रहे थे । लग रहा था जैसे यह मज़दूर पिरामिड के इर्द-गिर्द पड़ा मलबा हटा रहे थे । ऐसा लग रहा था कि यह वीडियो मीडिया में दिखाने के उद्देश्य से बनाया गया हो ।”

दुनियाभर के इजिप्टोलॉजिस्ट और पुरातत्ववेत्ताओं को इस घटना से काफ़ी आश्चर्य हुआ । इस पर तीखी प्रतिक्रिया आई । फ़ौरन ही मिस्र की सरकार ने विशेषज्ञों की समिति का गठन किया । इस समिति ने इस योजना का विरोध किया है । लेकिन मेनकौरे के पिरामिड के जीर्णोद्धार के बारे में मिस्र के पुरातन विभाग के प्रमुख का क्या सुझाव था?

डॉक्टर जेनिफ़र हेलूम ने कहा, ”हमें पता चला है कि उन्होंने एक जापानी गुट के साथ संपर्क किया है । कहा जाता है कि वह लोग मेनकौरे पिरामिड पर दोबारा ग्रेनिट की परत चढ़ाना चाहते हैं । यह ग्रेनिट गीज़ा के अन्य पिरामिड में इस्तेमाल हुए पत्थर से अलग है । वो कहते हैं कि इन ग्रेनिट पत्थरों का इस पिरामिड के निर्माण में इस्तेमाल होने वाला था । ग्रेनिट की परतों की सात पंक्तियों में इस्तेमाल हो सके इतना ग्रेनिट पत्थर पहले ही वहां मौजूद है ।”

वो कहते हैं कि इस पिरामिड पर से ग्रेनिट की नौ पक्तियों की परत ग़ायब है जिसे वो दोबारा पिरामिड पर चढ़ाना चाहते हैं । क्या यह अच्छी योजना है?

डॉक्टर जेनिफ़र हेलूम कहती हैं, ”सवाल यह है कि क्या उन्होंने इस बारे में सोचा है कि मूल तौर पर जो चूना पत्थर वहां लगा है वो पहले ही अच्छे स्तर का नहीं था इसलिए उस पर ग्रेनिट की परत चढ़ानी पड़ी थी । सैकड़ों सालों से मौसम की मार से पत्थर के उन ब्लॉक की स्थिति और ख़राब हो चुकी है । और क्या उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया कि वो अब कितने स्थिर हैं?”

“वहां जो ग्रेनिट के ब्लॉक्स पड़े हैं उन्हे पॉलिश नहीं किया गया है क्योंकि उन ब्लॉक्स को पिरामिड में लगाने से ठीक पहले पॉलिश किया जाता था और सही आकार दिया जाता था । इन पत्थरों को पॉलिश नहीं किया गया है इसलिए अगर इनकी परत चढ़ाई गई तो वो मूल पिरामिड से मेल नहीं खाएगी ।”

कोई भी यह निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि मेनकौरे पिरामिड के पास पड़े ग्रेनिट के ब्लॉक पहले कभी उस पिरामिड पर लगे हुए थे या नहीं । कुछ इजिप्टोलॉजिस्ट या मिस्र संबंधी विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि मेनकौरे कम उम्र में ही चल बसे थे, इसलिए उनके पिरामिड का निर्माण अधूरा रह गया था जिसकी वजह से इसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री वहीं पड़ी रह गई । मगर अब इन ग्रेनिट ब्लॉक्स को पिरामिड में लगाने की योजना से पुरातत्वशास्त्र के मौलिक सिद्धांतों पर ही बहस छिड़ गई है ।

डॉक्टर जेनिफ़र हेलूम का कहना है कि इस पिरामिड के संरक्षण के बजाय उसका नवीनीकरण किया जा रहा है, जो कि यह दुनियाभर की प्राचीन विरासतों के संरक्षण के लिए बनी वेनिस संधि के दिशा-निर्देशों के ख़िलाफ़ है ।

डॉक्टर जेनिफ़र हेलूम कहती हैं कि इस काम के संबंध में मुस्तफ़ा वज़ीरी ने यूनेस्को और उससे जुड़े पुरातत्ववेत्ताओं से सलाह मशविरा नहीं किया है । उनके नाटकीय वीडियो का मक़सद पिरामिड के बारे में हंगामा खड़ा करना था । लेकिन इस हंगामे से अगर दुनिया का ध्यान पिरामड पर केंद्रित होता है तो इससे पर्यटकों को आकर्षित करने में मदद मिल सकती है ।

पिरामिड का आकर्षण

‘फ़ाइनैंशियल टाइम्स’ की काहिरा संवाददाता हिबा सालेह बताती हैं कि पर्यटन मिस्र की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि देश की दस प्रतिशत आबादी को इससे रोज़गार मिलता है । कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 12 प्रतिशत हिस्सा पर्यटन से आता है । इससे देश को विदेशी मुद्रा मिलती है, जो उसके लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है क्योंकि मिस्र पिछले दो सालों से विदेशी मुद्रा की किल्लत से जूझ रहा है ।

वहीं ग़ज़ा में छिड़ी लड़ाई की वजह से स्वेज़ नहर से होने वाला यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ है । उससे होने वाली आय घट गई है, इसलिए पर्यटन को बढ़ावा देना और भी ज़रूरी हो गया है ।

वो कहती हैं, ”मेरे ख़याल से सरकार को लगता है कि देश के पर्यटन संसाधनों का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाया है । मिस्र में कई प्राचीन इमारतें और धरोहर हैं । रेगिस्तान भी है जहां डेज़र्ट सफ़ारी को बढ़ावा दिया जा सकता है । लंबा समुद्री तट है जिसका आनंद पर्यटक ले सकते हैं और उन्हें यहां आकर्षित करने के लिए काफ़ी कुछ किया जा सकता है ।”

पिरामिड मिस्र के पर्यटन उद्योग का मुख्य आकर्षण है । हर साल देश में लाखों पर्यटक आते हैं लेकिन मिस्र की सरकार को पर्यटकों को आकर्षित करने में कई संकटों का सामना भी करना पड़ा है ।

हिबा सालेह का मानना है कि पर्यटन पर राजनीतिक अस्थिरता का सीधा असर पड़ता है । मिसाल के तौर पर 2015 में रूसी पर्यटकों को ले जा रहे एक हवाई जहाज़ में शर्म-अल-शेख़ से उड़ान भरते ही विस्फोट हो गया । इससे कई सालों तक पर्यटन उद्योग को बहुत नुक़सान उठाना पड़ा । जब पर्यटन उद्योग पटरी पर आना शुरू हुआ तो कोविड महामारी आ गई ।

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मिस्र की सरकार ने कई प्राचीन धरोहरों के संरक्षण और मरम्मत के प्रोजेक्ट शुरू किए हैं । लेकिन सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है ग्रैंड इजिप्शियन म्यूज़ियम या जीईएम प्रोजेक्ट जो दुनिया में मिस्र की प्राचीन कलाकृतियों और मूर्तियों का सबसे बड़ा संग्रहालय बन सकता है ।

हिबा सालेह ने बताया कि जीईएम (GEM) प्रोजेक्ट पर बीस साल से काम चल रहा था । अब वह क़रीब पूरा हो चुका है । वो कहती हैं कि इस साल इसका उद्घाटन होने की संभावना है । मिस्र इसके लिए एक भव्य कार्यक्रम आयोजित करना चाहता है । इसमें दुनिया भर के नेताओं को आमंत्रित किया जाएगा । इस म्यूज़ियम में लाखों प्राचीन कलाकृतियां और वस्तुएं होंगी । इसमें तूतनख़ामेन के ख़ज़ाने की क़ीमती सामग्री भी होगी । मिस्र को आशा है कि इस म्यूज़ियम से पर्यटकों को आकर्षित करने में काफ़ी मदद मिलेगी ।

मेनकौरे पिरामिड पर ग्रेनिट पत्थरों की परत दोबारा चढ़ाने की योजना पूरे मिस्र में प्राचीन इमारतों की सफ़ाई कर के चमकाने के प्रयास का हिस्सा है । लेकिन कई लोग मानते हैं कि इससे उनका मूल स्वरूप बरक़रार नहीं रहेगा । कई लोग इसका विरोध कर रहे हैं ।

हिबा सालेह कहती हैं कि इस योजना को लोगों के सामने सही तरीके़ से पेश नहीं किया गया और ना ही विशेषज्ञों के साथ मशवरा किया गया । इसलिए यह बहस छिड़ गयी है कि प्राचीन इमारतों के संरक्षण और उसकी मरम्मत के बीच कैसा संतुलन होना चाहिए ।

पिरामिडों का संरक्षण

काहिरा की अमेरिकन यूनिवर्सिटी में इजिपटोलॉजी की प्रोफ़ेसर सलीमा इकरम कहती हैं कि मेनकौरे पिरामिड पर एक भी ग्रेनिट पत्थर चढ़ाने से पहले इंजीनियरों और विशेषज्ञों को जांच करके देखना चाहिए कि इससे ढांचे पर क्या असर पड़ेगा । उन्हें चिंता है कि जल्दबाज़ी में उठाए गए क़दम से स्थायी नुक़सान हो सकता है ।

”हज़ारों सालों से इस ढांचे पर ग्रेनिट की परत नहीं है । अब अगर हम वो परत लगाते हैं तो क्या उससे ढांचे का संतुलन बदल सकता है?”

जो वीडियो सामने आया था उससे लगता था कि मेनकौरे पिरामिड पर काम शुरू हो गया है, लेकिन जब हंगामा हुआ तो सरकार ने पुरातत्ववेत्ताओं की एक समिती बनाई जिसने पिरामिड की मरम्मत की योजना का विरोध किया जिससे इसके अमल पर सवाल खड़े हो गए ।

सलीमा इकरम कहती हैं कि संरक्षण एक पेचिदा मसला है, जिसे लेकर अलग-अलग राय है । इसका कोई सीधा सपाट जवाब नहीं है क्योंकि यह इमारत के स्वरूप पर भी निर्भर करता है । एक राय यह है कि अगर उसमें दरार है तो उसे इमारत कि निर्माण में मूल तौर पर इस्तेमाल की गई सामग्री से मेल खाती सामग्री से भरा जाए या जैसा है वैसा छोड़ दिया जाए । यह इस बात पर निर्भर करता है कि संरक्षण का उद्देश्य क्या है ।

सलीमा इकरम कहती हैं कि प्राचीन इमारत से टूट कर गिरी सामग्री को दोबारा लगाया जा सकता है लेकिन और जो भी काम किया जाए वो ऐसा हो कि अगर वह ठीक ना लगे तो उसे हटाया जा सके । मिसाल के तौर पर सत्तर और अस्सी के दशक में इन कामों के लिए सीमेंट का इस्तेमाल किया गया था जिसे हटाना मुश्किल हो गया और उससे उन प्राचीन इमारतों को नुक़सान हुआ ।

”संरक्षणकर्ताओं का उद्देश्य होता है कि प्राचीन ढांचों के मूल स्वरूप में ही रखा जाए । ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए जिससे इमारत की सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाए ।”

अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- मिस्र के पिरामिड के साथ क्या हो रहा है? जैसा की हमें एक्सपर्ट्स ने बताया कि प्राचीन इमारतों का संरक्षण एक पेचिदा मसला है ।

पिरामिड हज़ारों साल से दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं । वो मिस्र के पर्यटन उद्योग के लिए बेहद महत्वपूर्ण है । लेकिन उनके संरक्षण के लिए अगर ग़लत तरीके़ इस्तेमाल किए गए तो उन्हें नुक़सान पहुंच सकता है ।

दूसरी बात यह है कि हम नहीं जानते जब वो बनाए गए थे तब उनका मूल स्वरूप कैसा था । ऐसे में उन्हें उसी स्थिति में छोड़ देना बेहतर होगा जिस स्थिति में वो अब हैं ।

साभार : बी०बी०सी० हिंदी

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine






Most Popular

Recent Comments