उत्तराखंड में एक बार फिर से चिपको आंदोलन की शुरुआत होने जा रही है। खलंगा क्षेत्र के युवाओं का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। युवाओं का कहना है कि जलापूर्ति के लिए इतने पेड़ों की बलि देना प्रकृति से खिलवाड़ है। उत्तराखंड की संस्कृति प्रकृति को बचाने की है न कि इसे उजाड़ने की। पेड़ों को बचाने के लिए यहां चिपको आंदोलन जैसे बड़े आंदोलन चलाए गए थे। ऐसे में अब युवा भी इस आंदोलन को दोबारा शुरू करने जा रहे हैं। युवाओं इसके लिए सोशल मीडिया पर भी मैं हूं गोरा देवी नाम से मुहिम छेड़ दी है। उधर, क्षेत्रीय लोगों का भी कहना है कि इन पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपकना ही पड़ेगा।
रायपुर क्षेत्र के खलंगा में दो हजार पेड़ों को बचाने के लिए क्षेत्र के युवा मैं भी गोरा देवी नाम से अभियान चलाने जा रहे हैं। इसके लिए रविवार को शहर में प्रदर्शन किया जाएगा। खलंगा में ये पेड़ यहां पर पेयजल आपूर्ति को बनाए जा रहे जलाशय के लिए काटे जा रहे हैं। पेड़ काटे जाने के लिए इन पर अब निशान भी लगाए जा चुके हैं। क्षेत्रीय लोगों ने भी कहा है कि अब तो पेड़ों से चिपकना ही पड़ेगा।शनिवार को क्षेत्रीय लोगों ने सोंग बांध परियोजना के अधिकारियों के साथ बैठक भी की है। यह जलाशय सोंग बांध से जोड़ा जाना है। इसके बनने के बाद देहरादून जिले के विभिन्न इलाकों में पेयजल की आपूर्ति की जानी है। लेकिन, इसके लिए पहले 2000 पेड़ों को काटा जा रहा है। बताया जा रहा है कि वर्तमान में इसके लिए टेंडर भी हो चुका है। इसी क्रम में काटे जाने वाले पेड़ों पर निशान भी लगाए जा चुके हैं।